अब जम्मू-कश्मीर में अपना घर बना सकेंगे गोरखा

रोहन दुआ, नई दिल्ली पिछले एक सप्ताह से जब से जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मूल निवासी प्रमाण पत्र (डोमिसाइल सर्टिफिकेट) जारी करना शुरू किया है, तब से अभी तक करीब 6600 लोगों को यहां का मूल निवास प्रमाण पत्र मिल चुका है। इनमें बड़ी संख्या में गोरखा समुदाय के रिटायर्ड सैनिक और अफसर हैं। यहां का (डोमिसाइल) मूल निवास प्रमाण पत्र हासिल करने के बाद ये लोग यहां प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं और इस केंद्र शासित प्रदेश में नौकरियों के लिए आवेदन भर सकेंगे। जम्मू के अतिरिक्त उपायुक्त (राजस्व) विजय कुमार शर्मा ने बताया कि अभी तक 5900 से ज्यादा सर्टिफिकेट जारी किए जा चुके हैं। कश्मीर में करीब 700 सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं। इनमें से ज्यादातर गोरखा सैनिक और ऑफिसर ही हैं। जम्मू में बाहु तहसील के तहसीलदार डॉ. रोहित शर्मा ने बताया, 'सिर्फ मेरी तहसील में ही अब तक गोरखा समुदाय के करीब 2500 लोग, जिन्होंने भारतीय सेना में अपनी सेवा दी है और उनके परिवार के लोगों को यह सर्टिफिकेट जारी हो चुका है। करीब 3500 लोगों ने इसके लिए अप्लाई किया था। इनमें से थोड़े बहुत वाल्मीकि समुदाय से भी हैं।' वाल्मीकि समुदाय के लोगों को यहां 1957 में पंजाब से लाकर बसाया गया था। यह तब किया गया था जब राज्य के स्वच्छता कर्मी हड़ताल पर चले गए थे। यह मुख्यत: चार संगठनों का ही विरोध था, जिनमें गोरखा सैन्यकर्मी, वाल्मीकि, पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी और वे औरतें थीं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी की थी। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 18 मई को मूल निवास प्रमाणपत्र जारी करने के संदर्भ में नॉटिफिकेशन जारी किया था। इसके नियमों के अनुसार अगर मूल निवास प्रमाणपत्र जारी करने वाला अधिकारी (तहसीलदार) अगर 15 दिन के भीतर इसे जारी नहीं करता है तो उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा। इन नियमों के अनुसार जो लोग मूल रूप से जम्मू-कश्मीर के नहीं हैं लेकिन यहां 15 साल रह रहे हैं, उनके बच्चे इसे हासिल करने के हकदार हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार के कर्मचारी और केंद्रीय संस्थानों के कर्मी और कोई भी जिसने जम्मू और कश्मीर में 7 साल तक पढ़ाई की है और वह दसवीं और 12वीं परीक्षाओं में बैठा है वे इसे पाने के हकदार हैं। एक अधिकारी ने बताया कि इस संबंध में हमें लगातार ऐप्लीकेशंस मिल रही हैं। अभी तक करीब 33,000 आवदेन आ चुके हैं। हमें औसतन 200 आवेदन प्रतिदिन प्राप्त हो रहे हैं। सरकार के इस निर्णय से गोरखा समुदाय का एक बहुत लंबा संघर्ष खत्म हुआ है। गोरखा समुदाय के लोग यहां करीब 150 सालों से रह रहे हैं। उन्होंने इसकी लगभग आस छोड़ दी थी। लेकिन अब यह इंतजार खत्म होता दिख रहा है। 68 वर्षीय प्रेम बहादुर ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'मेरे पिता हरक सिंह ने यहां तब के शासक महाराजा हरि सिंह की सेना में नौकरी की थी। इसके बाद मेरा भाई ओमप्रकाश और मैंने गोरखा राइफल्स जॉइन की। मैं बतौर हवलदार रिटायर हुआ और वे (भाई) लेफ्टिनेंट हैं।' उन्होंने बताया कि सेना से रिटायर होने के बाद हम हर साल यहां स्थायी आवास प्रमाणपत्र (PRC, जो जॉब्स, अडमिशन और संपत्ति के मालिकाना हक के लिए जरूरी है) के लिए अप्लाई करते थे। लेकिन इसका कोई इस्तेमाल नहीं होता था। लेकिन अब मेरा एमबीए पास बेटा यहां सरकारी नौकरी के लिए आवदेन कर सकेगा। और अब मैं शांति से मर सकूंगा यह जानकर कि मैंने भारत की सेवा की है।


from India News: इंडिया न्यूज़, India News in Hindi, भारत समाचार, Bharat Samachar, Bharat News in Hindi https://ift.tt/2BDtwIN
via IFTTT

Comments

Popular posts from this blog

Mark Walter, Lulla Brothers Under Spotlight Over Multi Million Dollar Embezzlement Allegations: Report